दहमरू - DOT-Maharashtra Tourism
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असेट प्रकाशक
दहमरू
Districts / Region
महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाि जिले में तनलमभि दहमरू शॉल अपनी अनूठी बनावट और गुणवत्ता के ललए प्रलसद्ि हैं।
Unique Features
दहमरू शब्ि फारसी शब्ि हम-रू से ललया गया है, और इसका अथभ
नकल या नकल है। इसनेअन्य बुनाई शैललयों सेकुछ िकनीकों की
नकल की है िो इसके नाम का कारण हो सकिी हैं। दहमरू कुमख्वाब की प्रतिकृति है , जिसे प्रािीन काल के सुनहरे और िांिी के
िागों से बुना िािा है और ववशेष रूप से शाही पररवारों के ललए
बनाया िािा है। रेशम पर िरी के काम मेंसोनेया िांिी के िागेका
प्रयोग ककया िािा है। दहमरू र्ी उसी का उपयोग करिा है लेककन
थोडी घदटया गुणवत्ता का। बुनाई में रेशम के िागेके अलावा शैली में
सूिी या ऊनी िागेका र्ी उपयोग ककया िािा है।
िमकीलेआकषभक रंगों मेंपुष्ट्प डडिाइन, बहुि कम कीमि और ऊनी-
बिभन की कोमलिा इन शॉल की महत्वपूणभ ववशेषिाएं हैं। मुहम्मि-
त्रबन-िुगलक ने अपनी राििानी दिल्ली से िेवचगरी स्थानांिररि
करिे समय बनारस और अहमिाबाि से कुशल बुनकरों को साथ
लाया , िो िरी के काम के ववशेषज्ञ थे। दहमरू के काम का विभमान
स्वरूप इन बुनकरों की िेन है।
गहरे रंग की पष्ट्ृठर्ूलम पर सुंिर पुष्ट्प पैटनभ दहमरू डडिाइन के उच्ि
त्रबिं ुहैं। पैटनभ, रेखाएं, रंग और समग्र डडिाइन बुनाई की इस प्रलसद्ि
कला की गवाही िेिेहैं। एक पूरी िरह सेबुनेहुए, एक वगभ मीटर के
कपडेका विन लगर्ग १००-१५० ग्राम होिा है। बनु ेहुए पैटनभ के एक
वगभ इंि मेंलगर्ग २८० िागेकी चगनिी होिी है। हम अिंिा , एलोरा
गुफाओं के ववलर्न्न डडिाइनों को डडिाइन के पैटनभ के संिर्भ के रूप
मेंनोट कर सकिेहैंजिसके साथ वेअर्ी र्ी ववलशष्ट्ट पैटनभ बनािेहैं।
दहमरू को कॉटन और लसल्क के साथ एक अतिररक्ि वेट कफगर
फै त्रब्रक के साथ िेखा िा सकिा है। यह स्टोल, शॉल और फतनलभशगं
सामग्री के रूप मेंउपयोग के ललए आरामिायक है। इनमेंसेअचिकांश
डडिाइन अंडाकार, हीरे, वत्तृ , अष्ट्टकोण, ज्यालमिीय आकृतियों के
षट्र्ुि हैं। हम बािाम, अनानास, अनार िैसे फलों के डडिाइन और
िमेली, गुलाब, कमल, पक्षक्षयों, िानवरों िैसे फूलों के डडिाइन और
फूलों की लिाओं के डडिाइन र्ी िेख सकिेहैं।
आि अचिकांश दहमरू शॉल और साडडयााँपावरलूम द्वारा बडे पैमाने
पर उत्पादिि की िािी हैं, के वल कुछ ही अपने पारंपररक करघों का
उपयोग करिे हैं, लेककन िैयार उत्पािों में हस्ितनलमभि की कृपा और
िालाकी का अर्ाव होिा है। िूंकक बुनकरों की पुरानी नस्ल नहीं रही
और युवा पीढ़ी बेहिर वेिन वाली नौकररयों मेंिली गई, इसललए इस
कला के ललए दिन िूलमल निर आ रहे हैं। ऐसा कहा िािा है कक
१९५० के िशक में िबकक औरंगाबाि में लगर्ग ५००० बुनकर सकिय
थे, २०१८ िक के वल िो ही बिेथे। इस खूबसूरि कला के अजस्ित्व के
ललए आचिकाररक डेस्क के साथ-साथ गैर सरकारी संगठनों से र्ी
एक ववशाल प्रयास की आवचयकिा है।
Cultural Significance
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