• स्क्रीन रीडर एक्सेस
  • A-AA+
  • NotificationWeb

    Title should not be more than 100 characters.


    0

असेट प्रकाशक

पोतराज

भाषा विशेषज्ञों के अनुसार पोटराि शब्द तसमल शब्द पोिरुािूसेबना है, िो दक्षक्षण मेंलोकवप्रय ' सेिन ससस्टसि ' के नाम सेिानेिानेिाले ग्राम देिताओं के एक समूह का भाई है। िातत सेएक महार या मांग , पोटराि एक ग्रामीण / आढदिासी देिी , माररयाई का आजस्तक / अनुयायी है । मररअई को लक्षसमयाई के नाम से भी िाना िाता है इससलए पोतराि को मररयािाला या लक्ष्मीईिाला के नाम से भी िाना िाता है ।


भाषा विशेषज्ञों के अनुसार पोटराि शब्द तसमल शब्द पोिरुािूसेबना है, िो दक्षक्षण मेंलोकवप्रय ' सेिन ससस्टसि ' के नाम सेिानेिानेिाले ग्राम देिताओं के एक समूह का भाई है।
िातत सेएक महार या मांग , पोटराि एक ग्रामीण / आढदिासी देिी , माररयाई का आजस्तक / अनुयायी है । मररअई को लक्षसमयाई के नाम से भी िाना िाता है इससलए पोतराि को मररयािाला या लक्ष्मीईिाला के नाम से भी िाना िाता है । उन्हें ' कड़कलक्ष्मी' के नाम सेभी िाना िाता हैक्योंकक डॉ सरोजिनी बाबर के अनुसार उनके द्िारा की िानेिाली चाबुक को ' कड़क' कहा िाता है।
पोटराि, हालांकक एक पुरुष, एक मढहला की तरह कपड़े पहनता है, घुटने की लंबाई िाला घाघरा पहनता है। िह हमेशा नंगे-छाती िाला होता है, ज्यादातर दा़िी और मूंछों के साथ, उसके लंबेबाल हल्दी के साथ एक गााँठ में बंधे होते हैंऔर उसके माथे पर कुमकुम लगाया िाता है। उनकी पत्नी उनके साथ एक बंद देिहरा लेिाती हैं, जिसमें मररया की मूतति होती है। िह एक कंुची या मोर पंख सेबना ब्रश भी रखती है।
पंडडत के अनुसार महादेिशास्त्री िोशी , इस विषय पर एक विद्िान, प्राचीन काल सेमढहलाएं आढदिासी / ग्राम देिताओं के सलए एक पुिारी के कतिव्यों का पालन कर रही थीं। हालांकक कुछ समय के बाद पुरोढहती को पुरुष पुिाररयों नेअपने हाथ में ले सलया, लेककन उन्होंने मढहला पोशाक पहनकर ररिाि का पालन ककया। इस विषय पर एक अन्य विद्िान डॉ. आर.सी. धेरे का मत हैकक दक्षक्षण में, िहां तक कौमायि का संबंध है, मढहला ग्राम देवियों को बहुत सख्त माना िाता था और यह मढहलाओं या पुरुष ककन्नरों या पुरुषों में मढहलाओं के पहनािेमें पूिा करनेऔर बनाए रखनेमेंपररलक्षक्षत होता है। िगह की पवित्रता। पोतराि आमतौर पर मंगलिार और शुििार को एक छोटा ढोल या डफ बिातेहुए गांिों का दौरा करतेहैं। िह अपनी पत्नी के साथ मररअई, लक्ष्मीयाई या अंबाबाई की स्तुतत गातेहुए नत्ृय करतेहैं। प्रससद्ध गीत 'बया दार उघड़' , संत एकनाथ का एक प्रससद्ध भरूद, जिसनेशायद इसेपोटराि के रूप मेंसलखा था ।
मररया के सलए देिहारा का दरिािा खोलनेके सलए, िह खुद को उसकोड़ेसेमारता हैजिसेिह लेिाता है। दसू रे शब्दों में, िह स्ियं को िो आत्म-दंड देता हैिह देिी को प्रसन्न करनेके सलए होता है, िो तब अपनेकक्ष का दरिािा खोलती हैऔर स्थानीय आबादी की ओर सेपोटराि द्िारा पूछे गए प्रचनों का उिर देती है। गांि की मढहलाएं, कफर देिी से प्राथिना करती हैं, पूिा करती हैंऔर पोटराि को नकद और िस्तुके रूप मेंभुगतान करती हैं।
ग्रामीण आबादी का मानना है कक महामारी मररयाई के िोध का पररणाम है, और पोतराि िह माध्यम हैजिसके माध्यम सेउसकी पूिा की िाती है। हर गांि मेंहर समय कोई पोटराि मौिूद नहीं होता है, इससलए ऐसेमामलों मेंउन्हेंअन्य िगहों सेआमंत्रत्रत ककया िाता हैऔर गांि की सीमाओं से महामारी को दरू करने के सलए संस्कार करनेका अनुरोध ककया िाता है। पोटराि शहरी क्षेत्रों मेंभी देखा िाता है। आि भी यह ग्रामीण सामाजिक िीिन का एक महत्िपूणि अंग है।

जिले/क्षेत्र
महाराष्ट्र, भारत।

सांस्कृततक महत्ि
पोटराि शहरी क्षेत्रों मेंभी देखा िा सकता है, और आधुतनक समय मेंभी ग्रामीण सामाजिक िीिन का एक महत्िपूणि ढहस्सा है।
 


Images